❤️ଶ୍ରୀ ଓ ମହାପ୍ରଭୁ ଙ୍କ ହେରାପଞ୍ଚମୀ ❤
ଶ୍ରୀମହାପ୍ରଭୁ ଙ୍କୁ ମୋହନ ବିଦ୍ଯା ରେ ବାନ୍ଧିବେ ପାଟ୍ଟମାହାଦେଈ । ମହାପ୍ରଭୁ ଙ୍କ ବିରହ ରେ ଅସ୍ଥିର ହେଲାଣି ମା ସାଆନ୍ତାଣୀ ଙ୍କ ଚିତ୍ତ। ଧର୍ୟ୍ଯ ର ଭି ସୀମା ଟପିଲା ଶେଷରେ ବଡ଼ବାଡ଼ ସାଆନ୍ତାଣୀ ମା ବିମଳା ଙ୍କୁ ନିଜର ମନର ଦୁଃଖ ପ୍ରକାଶ କରନ୍ତି ମା ମହାଲକ୍ଷ୍ମୀ, ପଦ୍ମାଳୟା ଙ୍କ ଦୁଃଖ ଦେଖି ନପାରି ଲକ୍ଷ୍ମୀଦୂତି ଭାବେ ଗୁଣ୍ଡିଚା ଗମନ କରନ୍ତି ମା ବିମଳା, ସେଠାରେ ମହାପ୍ରଭୁ ଭେଟି ମା ଲକ୍ଷ୍ମୀ ଙ୍କ ବାର୍ତ୍ତା ପ୍ରଦାନ କରନ୍ତି ଯେ ନବବଧୂ ହୋଇ ଉଦାସ ମନରେ ଦେଉଳରେ ବସିଅଛି, ଚିତ୍ତ ବିନୋଦନ ପାଇଁ ସରସ୍ୱତୀ ଠାରୁ ବିଣା ,ସଂଗୀତ ରାଗ ଶିଖୁଛନ୍ତି। ହେଲେ ମନ ବୁଲି ବାଲି ପୁଣି କଳା ଶ୍ରୀମୁଖ କୁ ଖୋଜୁଛି। ଏପଟେ ମହାପ୍ରଭୁ ଙ୍କ ବାର୍ତ୍ତା ଆସି ମା ବିମଳା, ମା ଲକ୍ଷ୍ମୀ ଙ୍କୁ କହନ୍ତି ଯେ  ତୋ ବିନା କଳା ଶ୍ରୀ ମୁଖ ଗୋଟିକ ଝାଉଁଳି ପଡ଼ିଛି। ( ସୂଚନା- ମହାପ୍ରଭୁ ରଥ ରେ ସୁବର୍ଣ୍ଣ ଚିତା ଓ ରାହୁରେଖା ପରିଧାନ କରୁନଥିବା ରୁ ବିନା ସୁନା ଅଳଙ୍କାର ରେ ଶ୍ରୀମୁଖ ଶୁଖିଲା ଦିଶୁଥାଏ।)
ଏହିପରି ଧର୍ୟ୍ଯହରା ପଦ୍ମାଳୟା ଆଉ ରହିପାରନ୍ତି ନାହିଁ , ସୁତରାଂ ସେ ମା ବିମଳା ଙ୍କୁ ପଚାରନ୍ତି କେମନ୍ତ ପ୍ରଭୁ ଶ୍ରୀ ମନ୍ଦିର ବାହୁଡ଼ି ବେ!? ସେ ଲାଗି ମା ବିମଳା ନିଜ ତାନ୍ତ୍ରିକ ଶକ୍ତି ରୁ ମୋହନ ଚୂର୍ଣ୍ଣ ପ୍ରସ୍ତୁତ କରି ମା ଲକ୍ଷ୍ମୀ ଙ୍କ କଜଳ ରେ ଲଗାଇ ମା ସାଆନ୍ତାଣୀ ଙ୍କୁ ପ୍ରସ୍ତୁତ କରନ୍ତି ଆଉ କହନ୍ତି ମହାପ୍ରଭୁ ତାଙ୍କର ଶ୍ରୀ ମୁଖ ଦର୍ଶନ କରିବା ମାତ୍ରେ ମୋହିତ ହୋଇ ଶ୍ରୀ ମନ୍ଦିର ବାହୁଡ଼ିବେ। ଏହିପରି ମା ସାଆନ୍ତାଣୀ ସଜବାଜ ହୋଇ ମୋହଚୂର୍ଣ ସହ ଗୁଣ୍ଡିଚା ଅଭିମୁଖେ ପ୍ରସ୍ଥାନ କରନ୍ତି । ସେଠି ପହଞ୍ଚିଲା ବେଳକୁ ମହାପ୍ରଭୁ ସନ୍ଧ୍ଯା ଧୂପ ବସିଥାଏ। ମଣିମା ଙ୍କ ସମ୍ମୁଖ ରେ ଟେରା ବନ୍ଧା ହୋଇଥିବାରୁ ଏବଂ ଆଡ଼ପ ମଣ୍ଡପ ରେ ଦେଢଶୁର ବସିଥିବାରୁ ପଢ଼ିଆରୀ ଦୁଆର ଆଉଜି ଦିଏ,ଫଳରେ ଲକ୍ଷ୍ମୀ ଓ ନାରାୟଣ ଉଭୟ ପରଷ୍ପର ଙ୍କ ଦର୍ଶନ କରିପାରନ୍ତି ନାହିଁ। ପୂଜାପଣ୍ଡା ସନ୍ଧ୍ଯା ଧୂପ ସମୟରେ ମା ସାଆନ୍ତାଣୀ ଙ୍କ ଆଗମନ ଦେଖି ସୁତରାଂ ପୂଜା ଛାଡି ମହାପ୍ରଭୁ ଙ୍କ ଅଧରମାଳା ପତିମହାପାତ୍ର ଙ୍କୁ ପ୍ରଦାନ କରି କହନ୍ତି ମା ସାଆନ୍ତାଣୀ ଙ୍କୁ ଦେବା ଲାଗି। ( ମାନବୀୟ ଲୀଳା ଅନୁଯାୟୀ ମହାପ୍ରଭୁ ଆସି ମହାଦେଇ ଙ୍କୁ ସାନ୍ତ୍ବନା ଦେଇ କୁହନ୍ତି ଯେ ତୁମ୍ଭ ରାଗ ଗର୍ବ ର ଅଭିମାନ ସ୍ବର୍ଗ କୁ ବଳି ଅଛି କେବେ ଭୂମି ଉପରେ ଭି ଦ୍ରୁଷ୍ଟି ପକାଅ  ,  କହିବାର ତାତ୍ପର୍ୟ୍ଯ ଯେ ମହାପ୍ରଭୁ ଙ୍କ ଶ୍ରୀ ବିଗ୍ରହ ବିଶାଳ ହୋଇଥିବା ବେଳେ ମାଧବ ଛୋଟ ବିଗ୍ରହ ଟେ  ଥାଏ , ମହାପ୍ରଭୁ ଙ୍କ ଅନ୍ବେଷଣ ରେ ମହାଦେଇ ମାଧବ ଙ୍କୁ ଦେଖିପାରି ନଥାନ୍ତି, ଶ୍ରୀ ମନ୍ଦିର ଯାଇ ଦେଖ ମାଧବ ରୂପ ରେ ମୁଁ ସେଠାରେ ବିରାଜମାନ ଅଛି।) 
ପରେ ମା ସାଆନ୍ତାଣୀ ଫେରିବା ବେଳେ ରାଗ ର ଦାଉ ସାଧିବାକୁ  ଯାଇ ନନ୍ଦିଘୋଷ ରଥ ର କିଛି ଅଂଶ କ୍ଷତ କରି ହେରାଗୋହିରା ସାହି ଦେଇ ଲୁଚି କରି ଆସନ୍ତି ବଡ଼ଦେଉଳ
❤️श्री और महाप्रभू  के हेरा पंचमी ❤
श्री  महाप्रभू को अपने मोहन बिद्या से बान्धेगे  महारानी ..महाप्रभू के बिराह मे अस्थिर हो रही है मा ठकुराइन के चित्त । धैर्य के भी सीमा लाँघ गयी.. अंततः अपने मन के ब्यथा बड़बाड़ ठकुराइन मा बिमला जी के पास प्रकट करते है..मा महालक्मी,पद्मालाया जी के दुख ना देख पाते हुए लक्समी दुति के हिसाब से गुंडीचा मंदिर को गमन करते है मा बीमला..तंही महाप्रवु से भेट करते हुए मा लख्मी जी के बार्ता महाप्रभू को देते है की लख्मी नबबोधु  होकर अपने उदाशी मन  मे बड़ा मंदिर मे बैठी है.. चित सांत  हेतु मा सरस्वती जी से बिणा , संगीत, राग आदि सिख रहे है.फिर भी मन घूम फिर कर ढूंढ़ती रहती है
आपके काला मुख को..और यहाँ महाप्रभू के सन्देश आकर महलख्मी जी को देते है मा बीमला की तुम्हारे बिना उसके काला मुख  भी सूखा पड़ चूका है.( रथ के दौरान महाप्रभू  मस्तक  मे सुबर्णा चिता, राहुरेखा नहीं पेहेनते है. इसी वजह  से श्री मुख के तेज दिखाई नई देता है )
ऐसे है अपना धैर्य खोते हुए महारानी पूछते है  मा बीमला जी को की कैसे महाप्रवु श्री मंदिर लौटेंगे?  उसी वजह से मा बीमाला होने तांत्रिक शक्ति से मोहन चूरन प्रस्तुत करके मा लख्मी जी के काजल  मे लगाके तैयार करते है और कहते है उनके श्री मुख देखने के उपरांत ही मोहित होकर श्री मंदिर लौट आएंगे  महाप्रभू श्री जगन्नाथ..

 ऐसे ही मा पद्मालाया तैयार होकर मोहचूर्ण साथ मे लेकर प्रस्थान करते है गुंडीचा मंदिर के तरफ..वहां पहुँचने के समय महाप्रवु के संध्या पूजन चल रहा होता है..मणीमा के सामने टेरा बंधा हुआ रहता है और आडप मंडप मे जेठ बैठे हुए रहते है.. इसी लिए पढ़ियारी दरवाजा आधा बंद करलेते है इसीलिए लक्समी नारायण का श्री मुख दर्शन नई कर पाते है. पूजापंडा सेवयात ने संध्या धुप के दौरान महा ठकुराइन माँ आगमन देखके पूजा बिच  मे छोड़ कर महापभू का अधर माला पतिमहापात्र को प्रदान करते हुए बोलते है महा ठकुराइन को देने के लिए. लोग कथा के अनुशार  महाप्रभू  मानबिय लीला करते हुए महादेबी को सांतना देते हुए बोलते है तुम्हारा क्रोध और अहंकार का अभीमान स्वर्ग से भी ऊँचा हो गया है. इसीलिए तुम्हे भूमि पे ठेरा हुआ लोग दखाई नई देते है. कभी भूमि  पे भी  दृष्टी डालो. कहने का तात्पर्य ये है की श्री महाप्रभु के बिग्रह बहुत ही बड़ा  और  बिशाल  है. किन्तु माधब  के बिग्रह बहुत छोटा है. इसीलिए महाप्रभू बोलते है की माधब के रूप मे वहीं श्री मंदिर मे ही स्तिथ हु.. तुम्हे कभी नहीं छोड़ा  हुँ.. किन्तु तुम्हे दिखाई  नई देते है. फिर महादेबी गुस्से से गुंडिचा से लौटते बक्त अपना गुस्सा का भार  नंदिघोस के ऊपर उतार के नदिघोष रथ का एक हिस्सा तोड़ के हेरा गौरी रास्ते से होकर छुके से श्री मंदिर लौट आते है.
Hera Panchami: It is mainly occured on 5thday of Rath Yatra. On this auspicious day Maa Sridevi(Goddess Laxmi) came to Gundicha temple to hypnotise Lord Jagannath with Mohh Churna(Ashes from the Aarti) which was provided by Maa Bimala . Actually the patience period of Maa Mahadevi has overflowed she could not just stubborn to go to have a look of Shri Mujha then Maa Bimala gave her a Mohan churna to hypnotise Mahaprabhu ! So that Mahaprabhu ll return Shri mandir early. So Maa Bimala prepares Maa Mahadevi with full Srungar & she mixed some mohana churna in to the kajal ( eye liner ) so that mahaprabhu ll hypnotise after seeing her eyes! So Sridevi goes to gundicha according to plan but at the very time the sandhya dhupa of Mahaprabhu has been started in Adapa mandapa. The pratihari by Seeing maha laxmi coming towards Adapamandapa He partially closes the door cause Lord Badathakura is there ( means in Odia culture The sister- in - law from  younger brother can't appear next to The Elder Brother in law) so Mahadevi can't get a darshan nor Mahaprabhu but Mahaprabhu ll immediately send His Adharamala through Vidyapati to Offer Maa Mahalakshmi. & Mahadevi comes with frustation  from the Gundicha Temple and breaks a piece of wood from the Nandighosha Ratha to satisfy her anger and goes to Srimandira through a narrow road Heragouri Sahi of Puri.

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